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परिचय 🌸
नवरात्रि का आरंभ माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना से होता है। उनके नाम में दो शब्द हैं – “शैल” अर्थात पर्वत और “पुत्री” अर्थात पुत्री। वे हिमालयराज की पुत्री हैं और भक्ति, पवित्रता, साहस एवं अटूट संकल्प की प्रतीक हैं।
नवरात्रि के पहले दिन भक्तजन पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं और माँ को शुद्ध घी का भोग लगाते हैं।ऐसा करने से दीर्घायु, शक्ति, समृद्धि और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
“यदि आप नवरात्रि 2025 में माँ शैलपुत्री और अन्य देवी स्वरूपों की पूजा, मंत्र और कथा के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं, तो हमारे Navratri 2025 विशेष लेख को देखें।”
माँ शैलपुत्री की उत्पत्ति 🕉️
माँ शैलपुत्री का पूर्व जन्म सती के रूप में हुआ था, जो भगवान शिव की अर्धांगिनी और प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं।
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, परंतु उन्होंने भगवान शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया।
सती अपने पति के अपमान की परवाह न करते हुए, पिता के घर गईं, परंतु वहाँ दक्ष ने भगवान शिव का अत्यधिक अपमान किया।
अपने पति का यह अपमान सहन न कर पाने के कारण, सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए।
अगले जन्म में, वे हिमालयराज हिमवान की पुत्री के रूप में जन्मीं और माँ शैलपुत्री के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
माँ शैलपुत्री का स्वरूप 🌿
वाहन – नंदी (बैल) 🐂
हाथों में – दाएँ हाथ में त्रिशूल, बाएँ हाथ में कमल का फूल 🌸
प्रतीक – साहस, संयम, और अध्यात्मिक जागरण
माँ शैलपुत्री का यह स्वरूप हमें बताता है कि भक्ति और संयम से जीवन के हर कठिन मार्ग पर विजय पाई जा सकती है।
नवरात्रि में माँ शैलपुत्री की पूजा का महत्व ✨
माँ शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों के मन, तन, और जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है।
उनकी आराधना से:
मानसिक शांति और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है 🕉️
जीवन से नकारात्मकता और भय समाप्त होता है 🌿
साहस, आत्मविश्वास और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है 🌸
माँ शैलपुत्री की पूजा का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह आध्यात्मिक जागरण का प्रथम चरण है।
माँ शैलपुत्री पूजा विधि 🪔
नवरात्रि के पहले दिन भक्तजन माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना बड़े श्रद्धा भाव से करते हैं।
पूजा की सही विधि इस प्रकार है:
- स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजास्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- कलश स्थापना कर उस पर नारियल, आम के पत्ते रखें।
- माँ शैलपुत्री को पीले फूल, चंदन, कुमकुम, और अक्षत अर्पित करें।
- उन्हें शुद्ध घी का भोग लगाएँ।
- माँ के बीज मंत्र का जप करें:
“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः” 🕉️ - अंत में आरती करके माँ से आशीर्वाद प्राप्त करें।
माँ शैलपुत्री की विशेष कथा 🌺
पुनर्जन्म के बाद जब सती पार्वती के रूप में जन्मीं, तो उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की।
हजारों वर्षों तक उन्होंने व्रत रखा, जल और वायु पर ही जीवन यापन किया, और हिमालय की बर्फीली चोटियों पर ध्यान लगाया।
उनकी इस अडिग भक्ति और संकल्प शक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुनः अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया।
यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति, प्रेम, और दृढ़ निश्चय से असंभव भी संभव हो जाता है।
- FAQ Section
Q1. नवरात्रि के पहले दिन कौन सी देवी की पूजा होती है?
माँ शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। वे माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं।
Q2. माँ शैलपुत्री की पूजा कैसे की जाती है?
पहले माँ की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें, फिर उन्हें पीले फूल, शुद्ध घी, और पंचामृत अर्पित करें। साथ ही शैलपुत्री मंत्र का जाप करें।
Q3. माँ शैलपुत्री का वाहन क्या है?
माँ शैलपुत्री नंदी बैल पर विराजमान होती हैं।
Q4. शैलपुत्री मंत्र कौन सा है?
“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”
इस मंत्र का जाप करने से आत्मबल और साहस की प्राप्ति होती है।
Q5. नवरात्रि के पहले दिन पीले कपड़े क्यों पहने जाते हैं?
क्योंकि पीला रंग ज्ञान, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है, जो माँ शैलपुत्री को अत्यंत प्रिय है।